English Hindi Dictionary | अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश
पुं० [सं०√भू (होना)+णिच्+अच्] [वि० भाविक, भावुक] १. किसी वस्तु के अस्तित्व में आने, रहने या होने की अवस्था। प्रस्तुत या वर्तमान होने का तत्त्व या दशा। अस्तित्व। सत्ता। ‘अभाव’ इसी का विपर्याय है। (एग्ज़िस्टेन्स)। २. प्रत्येक ऐसा पदार्थ जो अस्तित्व में आता या जन्म लेता, बढ़ता या विकसित होता तथा अंत में नष्ट हो जाता है। ३. मन में उत्पन्न होनेवाले विचार का वह अपरिपक्व आरंभिक और मूल रूप जिसमें उसका आशय या उद्देश्य भी निहित होता है। मानस उद्बावना का वह रूप जो परिवर्धित तथा विकसित होकर विचार में परिणत होता है। जैसे—उस समय मेरे मन में अनेक प्रकार के भाव उत्पन्न हो रहे थे। ४. मन में उत्पन्न होनेवाली कोई भावना। खयाल। विचार। ५. कथन, लेख्य आदि का वह उद्दिष्ट और मुख्य अभिप्राय या आशय जो कुछ अस्पष्ट तथा गूढ़ होता है, और जो सहसा दूसरों की समझ में नहीं आता। आशय। तात्पर्य। मतलब। (सेन्स) जैसे—यहाँ कवि का भाव कुछ और ही है। ६. मन में उत्पन्न होनेवाली भावनाओं, विचारों आदि का वह आभास या छाया जो कुछ अवसरों पर आकृति आदि पर पड़ती और उन भावनाओं, विचारों आदि की सांकेतिक रूप में सूचक होती है। जैसे—उसके चेहरे पर एक भाव आता और एक जाता था। मुहा०—भाव देना=मन का कोई भाव शारीरिक चेष्टा या अंग-संचालन से प्रकट करना। उदा०—श्याम को भाव दै गई राधा।—सूर। ७. किसी चीज के प्रति होनेवाली हार्दिक भक्ति, विश्वास या श्रद्धा। उदा०—का भाखा, का संस्कृत, भाव चाहियतु साँच।—तुलसी। ८. किसी काम, चीज या बात का वह गुणात्मक अथवा धर्मात्मक तत्त्व जो उसकी मूल प्रकृति या विशेषता का आधार या सूचक होता है; और जिसकी सत्ता से पृथक् तथा स्वतंत्र मानी जाती है। (सब्स्टेन्स) जैसे—शीतल होने का भाव ही शीतलता है; इसीलिए ‘शीतलता’ भाव-वाचक संज्ञा है। ९. सांख्य में, बुद्धि-तत्त्व का कार्य, धर्म या विकार जो वेदांत के अनुसार ‘कर्म’ है। १॰. वैशेषिक में द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय ये छः पदार्थ जिनका अस्तित्व निश्चित तथा वास्तविक माना गया है। ११. व्याकरण में, धातु का अर्थ। १२. साहित्य में आश्रय की मानसिक स्थितियों का व्यंजक प्रदर्शन जिससे रस की उत्पत्ति होती है, और अनेक प्रकार के शारीरिक व्यापारों से व्यक्त होती है। साहित्यकारों ने इसके स्थायी, व्यभिचारी और सात्त्विक ये तीन प्रकार या भेद कहे हैं। (देखें उक्त शब्द) १३. संगीत के सात अंगों में से पाँचवाँ अंग जिसमें गाये जानेवाले गीत में वर्णित मनोभाव, शारीरिक अंग-संचालनों और चेष्टाओं के द्वारा मूर्त रूप में प्रदर्शित किये जाते हैं। मुहा०—भाव बताना=संगीत में गेय पद में वर्णित मनोभाव आंगिक चेष्टाओं के द्वारा प्रदर्शित करना। १४. चोचला। नखरा। मुहा०—भाव बताना=कोई काम करने का समय आने पर केवल हाथ-पैर हिला कर या बातें बना कर उसे टालने का प्रयत्न करना। (बाजारू) १५. फलित ज्योतिष में, ग्रहों की शयन, उपवेशन, प्रकाशन, गमन आदि बारह चेष्टाओं में से प्रत्येक चेष्टा या स्थिति जिसका ध्यान जन्म-कुंडली का विचार करने के समय रखा जाता है। और जिसके आधार पर फलाफल कहे जाते हैं। १६. ज्योतिष में साठ संवत्सरों में से आठवें संवत्सर की संज्ञा। १७. ज्योतिष में जन्म-समय का नक्षत्र। १८. चीज़ों आदि की वह दर या मूल्य जो प्रायः बाजारों में चलता और समय समय पर घटा-बढ़ता रहता है। निर्ख। जैसे—पहले भाव पूछ कर तब चीज खरीदनी चाहिए। पद—भाव-ताव। (देखें) क्रि० प्र०—उतरना।—गिरना।—घटना।—चढ़ना।—बढ़ना। १९. आत्मा। २॰. जगत्। संसार। २१. जन्म। पैदाइश। २२. चित्त। मन। २३. कार्य, कृत्य या क्रिया। २४. कल्पना। २५. उपदेश। २६. विभूति। २७. पंडित। विद्वान। २८. पशु। जानवर। २९. भग। योनि। ३॰. रति-क्रीड़ा। संभोग। ३१. अच्छी तरह देखना। पर्यालोचन। ३२. प्रेम। मुहब्बत। स्नेह। ३३. ढंग। तरीका। ३४. तरह। प्रकार। भाँति। ३५. उपदेश। ३६. उद्देश्य। हेतु। ३७. प्रकृति। स्वभाव। ३८. कामना। वासना। ३९. अवस्था। दशा। हालत। ४॰. विश्वास। ४१. आदर-सम्मान। ४२. दे० ‘भाव अलंकार’
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