English Hindi Dictionary | अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश
पुं० [सं०√लिंग (गति)=घञ् वा अच्] [वि० लैगिंक] १. कोई ऐसा चिन्ह या निशान जिससे किसी काम, चीज या बात की पहचान होती है। लक्षण। २. किसी वर्ग या समूह का प्रतिनिधित्व करने वाला तत्व, पदार्थ या बात। प्रतीक। ३. न्याय-शास्त्र में कोई ऐसी चीज या बात जिसमें किसी प्रकार की घटना या तथ्य का ठीक अनुमान या कल्पना होती हो अथवा प्रमाण मिलता हो। साधक हेतु। जैसे—धूम भी अग्नि का एक लिंग है। अर्थात् धूआँ दिखाई पड़ने पर आग का अनुमान होता या प्रमाण मिलता है। विशेष—हमारे यहाँ न्याय शास्त्र में यह चार प्रकार का कहा गया है- (क) संबद्ध जैसे—आग के साथ रहने वाला धुआँ उसका संबद्ध लिंग है। (ख) गौ, बैल आदि के सिर में लगे रहने वाले सींग उनके न्यस्त लिंग हैं। (ग) मनुष्य के साथ लगी रहनेवाली भाषा उसका सहवर्ती लिंग है और (घ) किसी अच्छी या बुरी बात के साथ विपरीत रूप में लगी रहनेवाली बुरी या अच्छी बात उसका विपरीत लिंग है। जैसे—गुण या अवगुण पाप और पुण्य आदि। ४. मीमांसा में वे छह लक्षण जिनके आधार पर लिंग का निर्णय होता है। यथा-उपक्रम, उपसंहार, अभ्यास, अपूर्वता, अर्थवाद और उपपत्ति। ५. सांख्य में मूल प्रकृति जिसमें सारी विकृतियाँ फिर से लीन होती हैं। ६. लोक-व्यवहारों में अर्थ की दृष्टि से जीव-जन्तुओं पेड़-पौधों अथवा पुरुष या स्त्री वाले दो प्रसिद्ध विभागों में से प्रत्येक विभाग। वह स्थिति जिसके कारण या द्वारा हम किसी को नर या मादा अथवा पुरुष या स्त्री कहते और मानते हैं। (सेक्स) ७. उक्त के आधार पर वह तत्त्व जो पुरुषों और स्त्रियों को अपनी काम-वासना पूरी करने अथवा संतान उत्पन्न करने में प्रवृत्त करता है (सेक्स) ८. व्याकरण के क्षेत्र में शब्द-गत दृष्टि से संज्ञाओं और सर्वनामों (तथा उनसे संबद्ध क्रियाओं और विशेषणों) का वह वर्गीकरण जिनसे यह सूचित होता है कि कोई संज्ञा या सर्वनाम पुरुष जाति का वाचक है या स्त्री जाति का। विशेष—संस्कृत, मराठी, फारसी, अँगरेजी आदि अनेक भाषाओं में पुंलिंग, स्त्रीलिंग और नपुंसक लिंग ये तीन लिंग होते हैं। परन्तु हिन्दी उर्दू, पंजाबी आदि अनेक भाषाओं में स्त्रीलिंग और पुंलिंग ये दो ही लिंग होते हैं। बंगला आदि कुछ भाषाओं में यह लिंग तत्त्व संज्ञाओं तक ही परिमित रहता है, सर्वनामों, विशेषणों, क्रियाओं आदि के रूपों पर लिंग-भेद का कोई प्रभाव नही पड़ता, सभी लिगों में उनके रूप एक से रहते हैं। ९. साहित्य में पदों, वाक्यों आदि में शब्दों की वह स्थिति जिसमें यह सूचित किया जाता है कि पद या वाक्य में आये हुए दूसरे शब्दों के साथ किसी विशिष्ट शब्द का कैसा अथवा क्या संबंध है। विशेष—इसका विशेष विवेचन काव्य-प्रकाश में देखा जा सकता है। १॰. पुरुष की जननेन्द्रिय या गुह्य इंद्रिय। उपस्थ। शिश्न। ११. शिव का एक विशिष्ट प्रकार का प्रतीक या मूर्ति जो पुरुष की जननेन्द्रिय के रूप में होती है। विशेष—हमारे यहाँ शिव के दो रूप माने गये हैं। पहला निष्क्रिय और निर्गुण शिव जो अलिंग कहा गया है और दूसरा जगत् की उत्पत्ति करने वाला शिव जो लिंग रूप है। इसी दूसरे और लिंग या प्रकृति के मूल कारण वाले रूप में शिव को ‘लिंगी’ भी कहते हैं। और इसी रूप में भारत में उनकी पूजा होती है (विशेष दे० ‘लिंग-पूजा’)। १२. वह छोटी डिबिया या पिटारा जिसमें लिंगायत लोग शिव-लिंग की मूर्ति बंद करके गले में पहने या लटकाये रहते हैं। १३. देवता की प्रतिमा या मूर्ति। विग्रह। १४. वेदान्त में आत्मा का वह बहुत छोटा और सूक्ष्म रूप जो शरीर के ढांचे के आकार का होता और मृत्यु के उपरांत शरीर के बाहर निकलता है। दे० ‘लिंग-शरीर’। १५. दे० ‘लिंग-पुराण’
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