English Hindi Dictionary | अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश
स्त्री० [सं० प्र√कृ+क्तिन्] १. किसी पदार्थ या प्राणी का वह विशिष्ट भौतिक सारभूत तथा सहज और स्वाभाविक गुण या तत्त्व जो उसके स्वरूप के मूल में होता है और जिसमें कभी कोई परिवर्तन या विकार नहीं होता। ‘विकृति’ इसी का विपर्याय है। जैसे—(क) जन्म लेना और मरना प्राणी मात्र की प्रकृति है। (ख) ताप उत्पन्न करना और जलाना अग्नि की प्रकृति है। (ग) जानवरों का शिकार करके भरना और चीतों और शेरों की प्रकृति है। २. विश्व में रचना या सृष्टि करनेवाली वह मूल नियामक तथा संचालक शक्ति जो सभी कारणों या कार्यों का उद्गम है और जिससे सभी जीव तथा पदार्थ बनते, विकसित होते तथा अंत में नष्ट या समाप्त होते रहते हैं। निसर्ग। विशेष—अधिकतर दार्शनिक, ‘प्रकृति’ को ही सारी सृष्टि का एक मात्र उपादान कारण मानते हैं। पर सांख्यकार ने कहा है कि इसके साथ एक दूसरा तत्व ‘पुरुष’ नाम का भी होता है। जिसके सहयोग से प्रकृति सब प्रकार की सृष्टियाँ करती है। भौतिक जगत् में हमें जो कुछ दिखाई देता है, वह सब इसी का परिणाम या विकार माना जाता है। इसी में सत्व, रज और तम नामक तीनों गुणों का अधिष्ठान कहा गया है। आध्यात्मिक क्षेत्रों और विशेषतः वेदांत में इसे परमात्मा या विश्वात्मा की मूर्तिमती इच्छा-शक्ति के रूप में माना गया है, और इसे ‘माया’ का रूपान्तर कहा गया है। कभी-कभी इसका प्रयोग ईश्वर के समानक के रूप में भी होता है। ३. वह सारा दृश्य जगत् जिसमें हमें पशु-पक्षियों, वनस्पतियाँ आदि अपने मौलिक या स्वाभाविक रूप में दिखाई देती हैं। जैसे—वहाँ प्रकृति की छटा देखने ही योग्य थी। ४. मनुष्यों का वह चारित्रिक मूल-भूत गुण, तत्व या विशेषता जो बहुत-कुछ जन्म-जात तथा प्रायः अविकारी होती है। जैसे—वह प्रकृति से ही उदार या दयालु (अथवा क्रोधी और लोभी) था। विशेष—इसमें इन सभी आकांक्षाओं, प्रवृत्तियों, वासनाओं आदि का अंतर्भाव होता है जिनके वश में रहकर मनुष्य सब प्रकार के काम करते हैं और जिनके फल-स्वरूप उनका चरित्र अथवा जीवन बनता-बिगड़ता है। ५. जीवन यापन का वह सरल और सहज प्रकार जिस पर आधुनिक सभ्यता का प्रभाव न पड़ा हो और जो निरोधक प्रतिबन्धों से बहुत-कुछ मुक्त या रहित हो। जैसे—जंगली जातियाँ सदा प्रकृति की गोद में ही खेलती और पलती हैं। (अर्थात् खुले मैदानों में, झगडे-बखेड़ों और भीड़-भाड़ से दूर रहते हैं)। ६. प्राणियों की जीवन-दायिनी और स्वास्थ्य पद प्रवृत्ति या स्थिति। जैसे—आजकल उन्होंने अपने रोग की दवा करना बन्द कर दिया है और उसे प्रकृति पर छोड़ दिया है। ७. वैद्यक में, शारीरिक रचना और प्रवृत्ति के आधार पर मनुष्य की मूल स्थितियाँ के ये सात विभाग—वातज, पित्तज, कफज, वात-पित्तज, वात कफज, कफ-पित्तज और समधातु। ८. व्याकरण में, किसी शब्द का वह आधार-भूत, मूल या धातु रूप जिसमें उपसर्ग, प्रत्यय आदि लगने अथवा और प्रकार के विकार होने पर उसके अनेक दूसरे रूप बनते हैं। ९. प्राचीन भारतीय राजनीति में राजा, अमात्य या मंत्री, सुहृद, कोश, राष्ट्र, दुर्ग, बल और प्रजा इन आठों का समूह। १॰. परवर्ती दार्शनिक क्षेत्र में, पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार इन आठों का समूह। ११. कर्मकांड में वह प्रतिमान या मानक रूप जिसे देखकर उसी तरह की और रचनाएँ प्रस्तुत की जाती हों। १२. आकृति। रूप। १३. प्रजा। रिआया। १४. नारी। स्त्री
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