English Hindi Dictionary | अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश
पुं० [सं०√रस् (आस्वादन)+अच्] [वि० रसाल, रसिक] १. वनस्पतियों अथवा उनके फूल-पत्तों आदि में रहनेवाला वह जलीय अंश या तरल पदार्थ जो उन्हें कूटने, दबाने, निचोड़ने आदि पर निकलता या निकल सकता है। (जूस)। जैसे—अंगूर, ऊख, जामुन आदि का रस। २. वृक्षों के शरीर से निकलने या पोछकर निकाला जानेवाला तरल पदार्थ। निर्यास। मद। (सैप) जैसे—ताड़, शाल आदि वृक्षो में से निकला या निकाला हुआ रस। ३. किसी चीज को उबालने पर निकलनेवाला अथवा तरल सार भाग। जूस। रस। शोरबा। ४. प्राणियों के शरीर में से निकलनेवाला कोई तरल पदार्थ। जैसे—पसीना, दूध रक्त आदि। पद—गो-रस=दूध या उससे बने हुए दही, मक्खन आदि पदार्थ। ५. प्राणियों, विशेषतः मनुष्यों के शरीर में खाद्य पदार्थों के पहुँचने पर उनका पहले-पहल बननेवाला वह तरल रूप जिससे आगे चलकर रक्त बनता है। चर्मसार। रक्तसार। रसिका। (वैद्यक में इसे शरीरस्थ सात धातुओं में से पहली धातु माना जाता है)। ६. जल। पानी। उदाहरण—महाराजा किवड़िया खोखो, रस की बूँदें पड़ी।—गीत। ७. पानी में घोला हुआ गुड़, चीनी, मिसरी या ऐसी ही और कोई चीज। जैसे—देहात में किसी के घर जाने पर वह प्रायः रस पिलाता है। ८. कोई तरल या द्रव पदार्थ। ९. घोड़ों, हाथियों आदि का एक रोग जिसमें उनके पैरों में से जहरीला या दूषित पानी बहता या रसता है। १॰. किसी पदार्थ का सार भाग। तत्त्व। सत्त। ११. पारा। उदाहरण—रस मारे रसायन होय (कहा०) १२. धातुओं आदि को (प्रायः पारे की सहायता से) फूँककर तैयार किया हुआ भस्म या रसौषध। जैसे—रसपर्पटी, रस-माणिक्य, रस-सिंदूर आदि। १३. लासा। लुआब। १४. वीर्य। १५. शिंगरफ। हिंगुल। १६. गंध-रस। शिलारस। १७. बोल नामक गंध द्रव्य। १८. जहर। विष। १९. पहले खिचाव का शोरा जो बहुत तेज होता और बढ़िया माना जाता है। २॰. खाने-पीने की चीज मुँह में पड़ने पर उससे जीभ को होनेवाला अनुभव या मिलनेवाला स्वाद। रसनेंद्रिय में होनेवाली अनुभूति या संवेदन (फ्लेवर)। विशेष—हमारे यहाँ वैद्यक में छः रस माने गये हैं—अम्ल, कटु, कषाय, तिक्त, मधुर और लवण। २१. कविता आदि में उक्त रसों के आधार पर माना हुआ छः की संख्या का वाचक शब्द। २२. कार्य, विषय व्यक्ति आदि के प्रति होनेवाला अनुराग। प्रीति। प्रेम। मुहब्बत। पद—रस-भंग=रस-रीति। मुहावरा—रस खोटा होना=आपस में प्रेम-पूर्ण व्यवहार में अन्तर पड़ना। २३. यौवन काल में मनुष्य के मन में अनुराग या प्रेम का होनेवाला संचार। मुहावरा—रस भीजना या भीनना= (क) मनुष्य में यौवन का आरंभ होना। (ख) मन में किसी के प्रति अनुराग या प्रेम का संचार होना। (ग) किसी पदार्थ का ऐसा समय आना कि उससे पूरा आनंद या सुख मिल सके। २४. दार्शनिक क्षेत्र में, इंद्रियार्थों के साथ इंद्रियों का संयोग होने पर मन या आत्मा को प्राप्त होनेवाला आनंद या सुख। २५. लोक-व्यवहार में, किसी काम या बात से किसी प्रकार का संबंध होने पर उससे मिलनेवाला आनंद या उसके फल-स्वरूप उत्पन्न होनेवाली रुचि। मजा। जैसे—कोई किसी रस में मगन है तो कोई किसी रस में। उदाहरण—राम पुनीत विषय रस रुखे। लोलुप भूप भोग के भूखे।—तुलसी। २६. उपनिषदों के अनुसार आनंद-स्वरूप ब्रह्म। २७. मन की उमंग या तरंग। मौज। २८. मन का कोई आवेग। जोश। मनोवेग। २९. किसी काम या बात में रहने या होनेवाला कोई प्रिय अथवा सुखद तत्त्व। जैसे—उसके गले (या गाने) में बहुत रस है। ३॰. किसी कार्य या व्यवहार के प्रति होनेवाली कुतूहलमूलक प्रवृत्ति या उससे होनेवाली सुखद अनुभूति। दिलचस्पी। (इन्टरेस्ट) जैसे—(क) इस पुस्तक में हमें कोई रस नहीं मिला। (ख) वे अब सार्वजनिक कार्यों में विशेष रस लेने लगे हैं। ३१. साहित्यिक क्षेत्र में, (क) तात्वत् वक दृष्टि से कथानकों, काव्यों, नाटकों आदि में रहनेवाला वह तत्त्व जो अनुराग, करुणा क्रोध, प्रीति, रति आदि मनोभाव जो जाग्रत, प्रबल तथा सक्रिय करता है। यह तत्त्व कवियों, लेखकों आदि की प्रतिभा, रचना-कौशल और उपयुक्त शब्द-योजना तथा वाक्य-विन्यास से उत्पन्न होता है। (ख) भारत के प्राचीन साहित्यकारों के मत से उक्त तत्त्व का वह विशिष्ट स्वरूप जिसकी निष्पत्ति अनुभाव विभाव और संचारी के योग से होती है और जो सहृदय पाठकों या दर्शकों के मन में रहनेवाले स्थायी भावों को परिपक्व, पुष्ट और जाग्रत या व्यक्त करके उत्कृष्ट या परम सीमा तक पहुँचाता और पाठकों या दर्शकों को प्रसन्न तथा संतुष्ट करके उनके साथ एकात्मता स्थापित करता है। (सेन्टिमेन्ट) इसके नौ प्रकार या भेद कहे गये हैं०-अद्भुत, करुण, भयानक, रौद्र, वीभत्स, वीर, शांत, श्रृंगार और हास्य। विशेष—प्रत्येक रस के ये चार अंग कहे गये हैं।—स्थायी भाव, विभाव (आलंबन और उद्दीपन), अनुभाव और संचारी भाव। ३२. कविता के उक्त नौ रसों के आधार पर नौ की संख्या का सूचक शब्द। ३३. अनुराग, दया आदि कोमल वृत्तियों के वश में रहने की अवस्था या भाव। उदाहरण—राजत अंग, रस-बिरस अति, सरस-सरस रस भेद।—केशव। ३४. काम-क्रीड़ा,। केलि। रति। विहार। ३५. काम-वासना। ३६. गुण, तत्त्व, रूप, विशेषता आदि के विचार से होनेवाला वर्ग या विभाग। तरह। प्रकार। जैसे—एक रस, समरस। उदाहरण—(क) एक ही रस दुनी न हरब सोक सोंसति सहति।—तुलसी। (ख) सम-रस, समर-सकोच-बस, बिबस न ठिक ठहराइ।—बिहारी। ३७. ढंग। तर्ज। उदाहरण—तिनका बयार के बस भावै त्यों उड़ाइ लै जाइ अपने रस।—स्वामी हरिदास। ३८. गुण। सिफत। ३९. केशव के अनुसार रगण और सगण की संज्ञा। स्त्री० [?] एक प्रकार की भेड़ जो गिलगित्त के पामीर आदि उत्तरी प्रदेशों में पाई जाती है। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है
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